बहुत पुरानी बात हैI सतपुडा के घने जंगल के पास एक योगी रहता थाI योगी का छोटा सा परिवार था जिसमे उसकी पत्नी के अलावा उनका एक लड़का थाI योगी का नाम सिद्धू और लड़के का नाम आर्यन थाI हालाकी लड़का अपने माता पिता की बहुत इज़्ज़त करता था पर उसके भी कुछ अरमान थे जो जंगल मे रहकर पूरे नही हो सकते थे, इसलिए उसने शहर जाने की सोचीI यही सोचकर वो एकदिन अपने पिता के पास गयाI
"पिता श्री प्रणामI"
"खुश रहो पुत्र आज सुबह सुबह कैसे आना हुआ?"
"पिताजी मैं शहर जाना चाहता हूँI"
"क्यूँ?"
"मुझे लगता है के आगे बढ़ने के लिए मुझे दुनिया देखना बहुत ज़रूरी हैI"
"लेकिन बेटा यहाँ भी तो सबकुछ है, शहर जाने की क्या ज़रूरत है?"
"कुछ भी तो नही है यहाँ ये जंगल है, मैं यहाँ कुछ नही कर पाऊँगाI"
"लेकिंग तुम्हे ये बात पैदा होने से पहले बताना चाहिए थे, हमलोग उसी हिसाब से भविष्य के बारे मे तय्यारी करतेI"
"पर ये कैसे संभव है?"
"आज तुम संभव असंभव की बात कर रहे हो जब इतने बड़े हो गये होI मैने तुम्हे इसी दिन के लिए खिलाया पिलाया और पाल पोसकर बड़ा कियाI आज जब तुम्हारे शरीर मे खून दौड़ रहा है और तुमने अपने पैरों पर चलने लायक हो गये हो तो शहर जाने की बात कर रहे होI अरे ज़रा सोचो अगर तुम्हारी मा ने तुमने जन्म नही दिया होता तो तुम्हारा क्या होता? अगर हमने तुमने चलना नही सिखाया होता तो क्या होता?"
"पर पिताजी..."
"अरे कभी तुमने सोचा है के मैंने तुमने बोलना नही सिखाया होता तो तुम्हारा क्या होता? आज तुम मेरे सामने ये सवाल लेकर कैसे आ पाते? हमने तुम्हे अपनी गोद मे खिलाया, आज की दुनिया मे कौन मा-बाप अपने बच्चे को गोद मे खिलाता है? इतना ही नही हमने तुम्हारी पैखने और पिशाब सॉफ किए है, सोचो अगर नही किया होता तो आज तुम्हे कितनी बीमारी हो गयी होतीI"
"पर पिताजी ये तो सभी करते हैं..."
"पर सभी लोग जंगल मे नही रहते हैंI आज तुम ऐसी बात कर रहे हो जैसे हमने तुम्हारे लिए कुछ किया ही ना होI"
आर्यन सोच मे पड़ गया की अपने पिता को कैसे समझाएI वो मन ही मन अपने किस्मत को कोस रहा थाI वो सोच रहा था की कहने को तो उसका पिता एक योगी है पर उसकी बुद्धि बिल्कुल विकसित नही है, तर्क के नाम पर वो महाशून्य ,ऐसे मे अपने पिता को समझाए तो कैसे? इस दौरान योगी सिद्धू गुस्से मे अनाप शनाप बके जा रहा था
"तुम बहक गये को पुत्र, तुम्हे मेरी बात अभी समझ मे नही आ रही, तुम्हारी सोच भीड़ की सोच की तरह की होकर रह गयी हैI ऐसे रहा तो तुम कभी कुछ नही कर पाओगेI अरे जब कुछ समझ मे नही आए तो जो कर रहे हो वही करते रहो, ज़्यादा इधर उधर ध्यान मत भटकाओ यहीं रहो और हम तुम साथ साथ ईश्वर् को पाएँगे"
"पर पिताश्री मेरा झूकाओ इश्वर की तरफ नही है, मैं एक बहुत ही साधारण सा मनुष्य हूँI"
"अच्छा ठीक है, ये बताओ शहर जाकर तुम क्या करोगे?"
"पिताश्री, मैं नैनो टेक्नालजी मे काम करना चाहता हूँ, और मुझे नही लगता मैं इस जंगल मे येसब कर पाउन्गाI"
"ऐसी बातें करके तुम इस जंगल का और मेरा अपमान मत करो क्या नही दिया हैI मैने और इस जंगल ने तुम्हे क्या नही दिया? और जहाँ तक नैनो टेक्नालजी की बात है तो तुम्हे बता दूं की इस जंगल मे वो भी होता ,काफ़ी सारे लोग उसपर काम करते हैं मुझे दो दिन का समय दो, मैं तुम्हे ढूंढ कर बताता हूँI"
"पर पिताश्री मुझे नही लगता की यहाँ पर नैनो जैसा कुछ होता है..."
"तुमने कभी खोजने की कोशिश की है? मैं जानता हूँ, मैं कह रहा हूँ तुमसे, मेरी बात तो मानो अगर मैं नही खोज पाया तो आज से दो महीने बाद तूमे चले जानाI"
"पर पिताश्री मुझे जल्दी जाना हैI"
"जंगल के नियम के अनुसार मैं तुम्हे जल्दी नही छोड़ सकता, पर मैं ये वचन देता हूँ की अगर मैं तुम्हारे लिए नैनो मे काम नही ढूंढ पाया तो तुम्हे आज की तिथि से दो महीने मे छोड़ दूँगाI"
"ठीक है, जैसा आप कहेंI"
किंतु जंगल मे नैनो टेक्नालजी पर काम हो यह कहाँ संभव हैI ये बात योगी को भी पता थी पर वो अपने आप को एक अवसर देना चाहता थाI वास्तव मे योगी के मन मे भी नैनो मे काम करने की इक्षा थी, पर उसे कभी ऐसा अवसर नही मिला और जब मिला भी तो उसे इस काम के लायक नही समझा गयाI उसकी क्षमता मे प्रशन्चिन्ह लगना उसके लिए एक बहुत बड़ा झटका था, क्यूंकी उसे अपने उपर पूरा भरोसा था अपने पुत्र को ये अवसर मिलता देख उसे अपना इतिहास याद आ गयाI कहते हैं की मनुष्य की जो हार सबसे गहरी होती है उसके लिए वो किसी और को जीतता देखे इससे बड़ा मानसिक कष्ट कुछ और नही होता, चाहे वो संबंध पिता-पुत्र की ही क्यूँ ना होI योगी इसलिए अपने पुत्र के लिए अड़चने पैदा कर रहा थाI एक झूठे कारण से ही सही, पर योगी ने अपने आप को समझा लिया था के जंगल मे ही सबका मंगल हो सकता है, यहाँ से बाहर जाना एक अधर्मी और हारे हुए व्यक्ति का काम हैI पुत्र के जाने के बाद योगी ने वेद और पुराण का अद्धयन किया और पुत्र को रोकने के तरीकों के बारे ने विचार करने लगाI कुछ दो चार सिद्धांतिक बातें उसने याद कर ली और आर्यन के सामने ऊगल दियाI आर्यन पहले भी ऐसी बातें बहुत बार सुन चुका था, इसलिए उसपर कोई फ़र्क नही पड़ा योगी का प्रयास एक साप्ताह तक चला, पर आर्यन तस-से-मस नही हुआ, वो अपने लक्ष्य को लेकर अडिग था, उसे अपने पिता के दिए गये आश्वासन की भरोसा नही थाI
योगी को जब समझ मे आ गया की किसी भी प्रयत्न का कोई लाभ नही है तो वो बिल्कुल चिढ़ सा गयाI गुस्से मे आकर वो अपनी दो महीने की बात से पलट गया, और आर्यन के जाने की तिथि एक साप्ताह विलंब हो गयीI योगी इसी बात से खुश था, और आर्यन को अपने पिता की मूर्खता पर हँसी आ रही थीI योगी के आदेश पर उसके पुत्र की कोई विदाई समारोह भी नही हुई, और सबको ये भी समझाया गया की भविष्य मे कभी किसी की विदाई समारोह नही होगीI जब जंगल के राजा ने उसके पुत्र के बारे मे पूछा तो योगी ने कह दिया की वो इस जंगल मे रहने लायक नही है, वो अपने कर्तव्य को लेकर समर्पित नही हैI उसका जंगल मे रहना उसके और जंगल दोनो के लिए हानिकारक हैI आर्यन को जब ये पता चला तो उसे दुख नही हुवा, बल्कि उसे हँसी आ गयीI पर उसे क्या फ़र्क पड़ता था, उसे तो नैनो मिल गया था
Sunday, November 9, 2008
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